गो-हत्या निषेध पर संविधान सभा में बड़ी रोचक बहस हुई थी | पूर्वी पंजाब के जनरल ठाकुर दास भार्गव, सेठ गोविन्द दास, प्रो. छिब्बन लाल सक्सेना, डॉ. रघुवीर, आ.बी. धुलिकर, जैड एच. लारी ( यूनाइटेड प्रोविन्स मुस्लिम सदस्य ) तथा असम से सैयद मुहम्मद सैदुल्ला सहित कई विद्वानों ने गोमाता की हत्या निषेध पर अपने विचार रखे थे |
अनुच्छेद ' शो पीस ' बनकर रह गया -
इन लोगो के सद्प्रयासो और सद्विचारो के चलते भारतीय संविधान में प्रावधान किया गया कि राज्य गायों, बछड़ो तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओ की नस्ल के परिक्षण तथा सुधार के लिए उनके वध पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए कदम उठाएगा | दुर्भाग्य रहा इस देश का कि संविधान का यह अनुच्छेद केवल शो पीस बनकर रह गया, क्योंकि देश के जो पहले प्रधानमंत्री बने, वह स्वयं मांसाहारी थे |
समितियों का गठन -
आज़ादी से पहले व बाद में गौ - हत्या पर कई समितियां व उपसमितियां बनी | 1946 में इन समितियों ने अपनी अलग-अलग रिपोर्टे दी | जिनके अवलोकन से सपष्ट हुआ कि सम्पूर्ण भारत में गो - हत्या पूरी तरह बंद होनी चहिये | संविधान सभा और इन समितियों के इस निष्कर्ष के उपरान्त एक और समिति गो-हत्या बंद करने के लिए उपाय सुझाने के लिए बनाई | लेकिन इस समिति ने अपने आका ( प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ) को प्रसन्न करने के लिए गो-हत्या निषेध के अपने उपाय न सुझाकर गोहत्या को कैसे जारी रखा जा सकता है, इस पर अपने विचार और सुझाव प्रस्तुतु किये |
इससे आपने देखा होगा कि प्रशासनिक अधिकारी अपने राजनैतिक आकाओं को प्रसन्न करने के लिए किस तरह सच्चाई का गला घोंटते है | देश को आज़ादी मिलने के बाद से ही यह परम्परा शुरू हो गई थी | स्वयं महात्मा गाँधी गौ- हत्या के खिलाफ थे और इसे स्वराज्य से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते थे | स्वतंत्रता से पहले गठित सभी समितियों ने गौ-हत्या के खिलाफ सिफ़ारिशे की, परन्तु आज़ादी के बाद ज्यों ही सत्ता विदेशी सोच वाले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु के हाथ में आई तो चापलूस अधिकारी उनकी सोच अनुसार ही समितियों की रिपोर्ट देने लगे |
अनुच्छेद ' शो पीस ' बनकर रह गया -
इन लोगो के सद्प्रयासो और सद्विचारो के चलते भारतीय संविधान में प्रावधान किया गया कि राज्य गायों, बछड़ो तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओ की नस्ल के परिक्षण तथा सुधार के लिए उनके वध पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए कदम उठाएगा | दुर्भाग्य रहा इस देश का कि संविधान का यह अनुच्छेद केवल शो पीस बनकर रह गया, क्योंकि देश के जो पहले प्रधानमंत्री बने, वह स्वयं मांसाहारी थे |
समितियों का गठन -
आज़ादी से पहले व बाद में गौ - हत्या पर कई समितियां व उपसमितियां बनी | 1946 में इन समितियों ने अपनी अलग-अलग रिपोर्टे दी | जिनके अवलोकन से सपष्ट हुआ कि सम्पूर्ण भारत में गो - हत्या पूरी तरह बंद होनी चहिये | संविधान सभा और इन समितियों के इस निष्कर्ष के उपरान्त एक और समिति गो-हत्या बंद करने के लिए उपाय सुझाने के लिए बनाई | लेकिन इस समिति ने अपने आका ( प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ) को प्रसन्न करने के लिए गो-हत्या निषेध के अपने उपाय न सुझाकर गोहत्या को कैसे जारी रखा जा सकता है, इस पर अपने विचार और सुझाव प्रस्तुतु किये |
इससे आपने देखा होगा कि प्रशासनिक अधिकारी अपने राजनैतिक आकाओं को प्रसन्न करने के लिए किस तरह सच्चाई का गला घोंटते है | देश को आज़ादी मिलने के बाद से ही यह परम्परा शुरू हो गई थी | स्वयं महात्मा गाँधी गौ- हत्या के खिलाफ थे और इसे स्वराज्य से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते थे | स्वतंत्रता से पहले गठित सभी समितियों ने गौ-हत्या के खिलाफ सिफ़ारिशे की, परन्तु आज़ादी के बाद ज्यों ही सत्ता विदेशी सोच वाले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु के हाथ में आई तो चापलूस अधिकारी उनकी सोच अनुसार ही समितियों की रिपोर्ट देने लगे |
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