Wednesday 17 February 2016

शिक्षा का भगवाकरण आखिर क्या?

इस समय शिक्षा के पाठ्यक्रम का भगवाकरण करने होने का आरोपी शोर मचा रहे है | किन्तु “भगवाकरण क्या है”? यह कोई नहीं बताता | अपरिभाषित संप्रदायिकता की तरह शिक्षा के पाठ्यक्रम का अपरिभाषित अमूर्त भगवाकरण के आरोप की आंधी चलाने की कोशिश की जा रही है | सबसे अधिक शोर मचाने वाले वो है जो देश और देश के इतिहास को ‘लाल’ कर देने के लिए लालायित थे, लालायित है; जिन्होंने 6 दशक लगातार देश के इतिहास का चेहरा और चरित्र घिनौना बनाने का षड़यंत्र किया |

स्वतंत्र भारत की कांग्रेस सरकार ने इतिहास को उन कम्यूनिस्टो के हाथो में सौंप दिया, जिनका उद्देश्य भारत के अस्तित्व को नष्ट करना था और जो भारत राष्ट्र को आज भी 16 देशो अर्थात विभिन्न राष्ट्रीयताओं का कृत्रिम समूह मानते है | ये भारत में मजहबी आधार पर द्विराष्ट्र-सिद्धांत के पोषक भी थे | ऐसे लोग भारत का इतिहास कैसे लिखते? भगवाकरण की बात करने वाले इस बात को चालाकी से भुला देते है कि इंदिरा गाँधी के दौर में जब नूरल हसन शिक्षा मंत्री की कुर्सी पर बैठे, तब मार्क्सवादी विचारधारा बिना किसी संवाद के देश पर थोपी गयी थी | और इतिहास परिषद् द्वारा कम्यूनिस्ट महासचिव नंबूदिरीपाद की किताब प्रकाशित हुई, जबकि सुप्रसिद इतिहासकार रमेशचंद्र मजूमदार और यदुनाथ सरकार के लिखे ग्रंथो को कूड़े में डाल दिया गया |

देशवासियों को इस देश के इतिहास, चरित्र और कर्तव्य से भ्रमित करके उनसे सदाचार की आशा नहीं की जा सकती | देश के भीतर इन दिनों जितनी विकृतियां उत्पन्न हुई है और जिनका लाभ देश विरोधी शक्तियाँ उठा रही है, उनकी जड़ में वहीँ लोग है जिन्होंने गलत इतिहास, विकलांग शिक्षा और पराश्रित विकास नीति बनवाई और उन्हें लागू किया | लेकिन अब कांग्रेस के प्रश्रय पर कम्यूनिस्टो द्वारा किये गये बौद्धिक-शैक्षिक गोलमाल और इतिहास के साथ की गयी छेड़-छाड़ से देश का जनमानस परिचित हो चुका है | अब समय है कि देशवासियों को सपष्ट रूप से बताया जाए कि जिस शिक्षा और इतिहास का भगवाकरण करने का आरोप लगाया जा रहा है वह क्या है?

क्या इतिहास की विसंगतियों को दूर नहीं किया जाना चाहिए? क्या कम्यूनिस्टो द्वारा रचित ”आर्य विदेशी और और मुग़ल स्वदेशी” जैसा इतिहास पढाया जाना उचित और देशहित में है? क्या अत्याचारी मुग़ल आक्रांत अकबर को महान और शूरवीर महाराणा प्रताप को पथभ्रष्ट देशभक्त बताकर पुस्तको में पढाया जाना सही है? क्या ज्ञान-विज्ञान की भारतीय जानकारी छात्रों से छिपा कर रखनी चहिये? क्या सरकारी स्तर पर सर्वपंथ समभाव और सामाजिक स्तर पर सर्वपंथ समादर की भावना जागृत करना संप्रदायिकता भड़काना और भगवाकरण करना है? क्या यह सत्य नहीं है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात राधाकृष्णन आयोग 1948-49, कोठारी आयोग 1964-66, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1989, राममूर्ति समिति 1992 आदि सभी आयोगों व समितियों ने शैक्षिक प्रणाली को मूल्य आधारित बनाने की आवश्यकता का प्रतिपादन नहीं किया है? जिन तत्वों को शिक्षा के भारतीयकरण पर आपत्ति है, उन्हें किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए – आक्रामको, राष्ट्रद्रोही या विदेशी दलालो की?

राष्ट्रवादी शिक्षा का विरोध करने वाले लोग मुस्लिम मदरसों में दी जा रही मजहबी शिक्षा का विरोध क्यूँ नहीं करते? पश्चिम बंगाल में शिक्षा का पूरी तरह वामपंथीकरण कर देने वाले लोग ही भारतीयकरण का घोर विरोध कर रहे है | समस्त भारत की भाषाओ की माता और भारत की आत्मा की भाषा संस्कृत को पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप में शामिल क्यूँ नहीं होने दिया गया? और अब जब उसे वैकल्पिक विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने के प्रयास हो रहे है तो इस पर आपत्ति और शोर क्यूँ मचाया जा रहा है? क्या नेहरु जी जैसे घोर भौतिकवादी व्यक्ति ने भी शिक्षा के आध्यात्मिकरण की आवश्यकता को स्वीकार नहीं किया था? आध्यात्मिकता की बात इस देश में भले ही कुछ लोगो को अच्छी न लगे, लेकिन पश्चिमी देश उसके लिए भारत की ओर देख रहे है | संस्कृत सिखाने वाले विश्वविद्यालयो की संख्या विदेशो में लगातार बढ़ रही है | इसलिए जब तक भारत में कौटिल्य का अर्थशास्त्र, शुक्राचार्य की नीतियाँ, वाल्मीकि और व्यास रचित रामायण, और राजशास्त्र की उपेक्षा की जाती रहेगी, तब तक भारतवासियों को आत्मगौरव का अनुभव नहीं होगा |

एक बाइबिल, एक कुरान को आधार बनाकर दुनिया में सैकड़ो विश्वविद्यालय है – जहां लाखो अध्यापक, विद्यार्थी और शोधकर्ता लम्बे समय से लगे हुए है | दूसरी ओर हिन्दू परंपरा में असंख्य गुरु-गंभीर, दार्शनिक ग्रन्थ है – वेद, उपनिषद् पुराण आदि, किन्तु इनके अध्ययन के लिए एक विश्वविद्यालय तो छोड़िये, कायदे का एक विभाग भी कोई नहीं जानता | यदि कोई शिक्षा-शास्त्री इस विकृति को ठीक करने की बात कहे तो उसे संप्रदायिकता से ग्रस्त बताया जाता है | यह हिन्दू विरोध नहीं तो और क्या है?

क्या यह सच नहीं है कि यह हमारी अब तक की शिक्षा प्रणाली और पाठ्यक्रम का ही दोष है कि बहुत से छात्र परिक्षाओ में विफल रहने के कारण आत्महत्या तक कर लेते है? छात्रों की ज्ञानात्मक, विज्ञानात्मक, भावात्मक, आध्यात्मिक और तथ्यपरक इतिहास की दृष्टि को पुष्ट करना यदि शिक्षा का भगवाकरण करना है तो इस भगवाकरण को शत-शत नमन क्यों नहीं किया जाना चाहिए? जो शिक्षा रोमिला थापर और मार्क्सवादी मण्डली ने पिछले 6 दशको में दी है, वह पूरी तरह विकृत रही है | मार्क्सवादी लोग सबसे अधिक धर्म-निरपेक्षता का शोर मचाते है लेकिन मई 1941 में मार्क्सवादियों ने प्रस्ताव पास कर द्वि-राष्ट्र सिद्धांत और देश के टुकड़े करने का समर्थन किया था | यदि शिक्षा में धर्म-निरपेक्षता की फिक्र है तो देशभर में चल रहे मदरसों का पाठ्यक्रम चिंता का कारण होना चाहिए | इसमें क्या पढ़ाया जाता है, उससे अबोध मुसलमान बच्चो में क्या मानसिकता बनती है – यह वामपंथियों में कभी विचार का विषय नहीं बनता | क्योंकि संप्रदायिकता का रंग तो केवल भगवा होता है |


यथार्थ यह है कि राजनैतिक दंगल में भाजपा का मुकाबला करने में असमर्थ होकर वामपंथी जमात संस्कृत, भारतीय संस्कृति और संस्कार से बैर कर बैठी है |

जब सब बाते साम्यवादी तथा उनके सहकर्मी लेखको रोमिला थापर, सतीशचन्द्र, अर्जुनदेव आदि के आर्थिक स्वार्थो को पूर्ण करने के लिए हो रही थी तब सब लोग लाल थे | जब उनका एकछत्र राज्य समाप्त हुआ तो वो पीले पड़ गये | हम सब लोग जानते है लाल और पीला मिलकर भगवा बनता है | अब उनकी भगवा आँख को हर अच्छी बात बुरी लगती है और इसको भगवाकरण कहते है | अनजाने ही सही, कम्यूनिस्टो और मुस्लिमपरस्तो ने जिस गाली का अविष्कार हिन्दुओ को गाली देने के लिए किया है, वह “भगवा” देश की आत्मा की हुंकार है, जो अब गूंजने लगी है और अभी और गूंजेगी | युगद्रष्टा महर्षि श्री अरविन्द की भविष्यवाणी में आया “भारत का पुरावतरण” मिथ्या नहीं हो सकता |

Saturday 6 February 2016

'महानता' पाने को तरसता महापुरुष महाराणा प्रताप का नाम

जब भी देश में ‘महान कौन? अकबर या राणा प्रताप?’ विषय पर बहस छिड जाती है तो मुझे भी स्कूल की इतिहास वाली पुस्तकों में पढ़े वामपंथी इतिहासकारों के स्वर्णिम अक्षर याद आ जाते है | एक और जहाँ अकबर, टीपू सुल्तान और औरंगजेब आदि महान दिखाई पड़ते थे वहीं इस महानता को पाने के लिए राम, कृष्ण, विक्रमादित्य, पृथ्वीराज, राणा प्रताप, शिवाजी और ऐसे कितने ही महापुरुषों के नाम तरसते रहते | पुस्तकों में अकबर के बारे में छपे पुरे अध्याय में दो-तीन लाइन महाराणा प्रताप पर भी होती थी | वो कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया और कैसे उनके ही राजपूत उनके खिलाफ थे आदि | अब अकबर और महाराणा प्रताप का मुकाबला कहा? कहाँ अकबर पूरे भारत का सम्राट, अपने हरम में पांच हज़ार से भी ज्यादा औरतों की जिन्दगी रोशन करने वाला, बीसियों राजपूत राजाओं को अपने दरबार में रखने वाला और कहा राणा प्रताप जो सब कुछ त्याग कर अपने राज्य के लिये लड़ता रहा, जिसका कोई हरम नहीं और अपने राज्य की रक्षा के लिये वनों में रहकर घास की रोटी खाता रहा | वो राणा प्रताप जो अकबर “महान” का संधि प्रस्ताव कई बार ठुकरा चुका था | सच है कि हमारे इतिहासकार किसी को महान यूँ ही नहीं कह देते | ऐसे इतिहासकार जिनका अकबर दुलारा और चहेता है, एक बात नहीं बताते कि कैसे एक ही समय पर राणा प्रताप और अकबर महान हो सकते थे जबकि दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी थे? जब मेवाङ की सत्ता राणा प्रताप ने संभाली, तब आधा मेवाङ मुगलों के अधीन था और शेष मेवाङ पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये अकबर प्रयासरत था । राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे | जंगल-जंगल भटकते हुए घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया। तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए। महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित थे, किन्तु फिर भी वो झुका नही, डरा नही। उनके धैर्य और साहस का ही असर था कि 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बन्दी न बना सका। 


महाराणा प्रताप सच्चे क्षत्रिय योद्धा थे, उन्होने अमरसिंह द्वारा पकङी गई बेगमों को सम्मान पूर्वक वापस भिजवाकर अपने विशाल ह्रदय का परिचय दिया। उनके शासनकाल में अनेक विद्वानो एवं साहित्यकारों को आश्रय प्राप्त था। अपने शासनकाल में उन्होने युद्ध में उजङे गाँवों को पुनः व्यवस्थित किया। पद्मिनी चरित्र की रचना तथा दुरसा आढा की कविताएं महाराणा प्रताप के युग को आज भी अमर बनाये हुए हैं।
अब एक नज़र डालते है अकबर महान से जुडी कुछ बातों पर और वो भी तथ्यों के साथ | अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” यहाँ से शुरू है - “अकबर भारत में एक विदेशी था | उसकी नसों में एक बूँद खून भी भारतीय नहीं था…. अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था” | पर देखिये! हमारे इतिहासकारों ने अकबर को एक भारतीय के रूप में पेश किया है | जबकि हकीकत यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं, से लेकर तैमूर तक सब भारत में लूट, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, मंदिर विध्वंस, आदि कामों में लगे रहे | बाबर शराब का शौक़ीन था और हुमायूं अफीम का | अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में लीं | अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतनी ज्यादा पीनी शुरू कर दी थी कि वह मेहमानों से बात करता करता भी नींद में गिर पड़ता था | ये भी इतिहास है कि अकबर आगरा में मीना बाज़ार लगवाता था और उस मीना बाज़ार में खुद औरतो के कपडे पहन के जाता था और जो औरत पसंद आती थी उसको ले आता था | बीकानेरकी महारानी किरण देवी उस मीना बजार में आई थी और अकबर किरण देवी पर मोहीत हो गया | वहा किसी भी तरह उसे हासिल करना चाहता था | तब उसकी बानियाँ किरण देवी को बहला फुसलाकर अकबर के दरबार में ले गई | जब अकबर के सामने पहुंची महारानी ने अकबर की बुरी नियत को देखा तो उसे गिराकर उसकी छाती पर छुरी लेकर चढ़ गई, तब अकबर ने बहन बनाकर उससे माफ़ी मांगी थी |


ये भी इतिहास है की अकबर ने तुलसीदास को क़ैद किया | जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर कुछ भी लिखना पढ़ना नहीं जानता था पर यह दिखाता था कि वह बड़ा भारी विद्वान है |
रणथंभोर की संधि में अकबर महान की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं | बैरम खान जो अकबर के पिता तुल्य और संरक्षक था, उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के तुल्य स्त्री से शादी की | कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ी और उस स्थान पर नमाज पढ़ी | चित्तौड़ में तीस हजार लोगों का कत्लेआम करने वाला और नगरों और गाँवों में जाकर नरसंहार कराकर लोगों के कटे सिरों से मीनार बनाने वाले क्रूर आक्रांता को आज “शान ए हिन्दोस्तां” लिखा जा रहा है | यह विडंबना ही है कि विश्व को ज्ञान देने वाले भारत को ही दुनिया का सबसे झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है।

शिक्षा का भगवाकरण आखिर क्या?

इस समय शिक्षा के पाठ्यक्रम का भगवाकरण करने होने का आरोपी शोर मचा रहे है | किन्तु “भगवाकरण क्या है”? यह कोई नहीं बताता | अपरिभाषित संप्रदाय...