Saturday 30 January 2016

मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का परिणाम था विभाजन

विभाजन एक ऐसी घटना थी जिसने इस राष्ट्र को जड़ तक हिला दिया | 14 अगस्त 1947 का वह क्रूर दिन जब पाकिस्तान में लाखो हिन्दुओ ने अपने प्राण इसलिए चढ़ा दिए कि भारत का जीवन अमर रहे | उस प्रलयकारी घटना की दो गवाह – सरकारी तथ्य शोधक समिति (फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) की रिपोर्ट और दूसरी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की रिपोर्ट है, जिनसे आज की पीढ़ी जान सकती है कि क्या हुआ था | हिन्दुओ के नरसंहार, लूट, अग्निकांड, अपहरण और बलात्कार के वे घाव कभी किसी परदे से नहीं ढके जा सकेंगे |

फ्रायड ने कहा है कि, “अगर हमारे अतीत और भविष्य पर कोई प्रकाश न डाल सके, तो इतिहास के अध्ययन का क्या लाभ और उससे हमने क्या शिक्षा ग्रहण की? ऐसे निर्जीव अध्ययन का क्या करना?” इसलिए विभाजन के संदर्भ में यह विवरण आज के राजनीतिक लोगो को बेचैन कर देगा जो गाँधी और नेहरु की कसमे खाए जा रहे है | यह नंगा करेगा उन छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों को जिन्होंने यह मिथक निर्माण किया कि देश को आज़ादी अहिंसा के हथियार से मिली |
विभाजन जिस तरीके से हुआ वह जल्दबाजी और अनियोजित था, जिसका परिणाम अनगिनत प्राणहानि हुआ | गाँधी जी भारत के राष्ट्रवादी जनता के अद्वितीय नेता थे | उनकी इस घोषणा के भुलावे में लाखो हिंदू मारे गये कि –“भारत का विभाजन मेरी लाश पर ही होगा” | जनता की गाँधी जी प्रति ऐसी निष्ठां थी कि वो सोच भी नहीं सकते थे कि जब गाँधी जी जीवित हैं, तो हमारी मातृभूमि का विभाजन किस प्रकार हो सकता है | लेकिन दूसरी ओर ब्रिटिश सत्ताधारियों की सहायता के आधार पर जिन्ना को अच्छी तरह पता था कि हमें पाकिस्तान मिल कर ही रहेगा और मुसलमानों ने उसके मार्गदर्शन में भारी तैयारी कर ली थी | एक तरफ मुस्लिम पूरी तरह तैयार थे और दूसरी तरफ हिंदू बिलकुल भी नहीं | उन्होंने अपने दिमाग में दो व्यक्तियों – गाँधी और नेहरु को गिरवी रख छोड़ा था |


जब विभाजन अनिवार्य हो चुका था, तब भी गाँधी और नेहरु ने महान दृष्टा डॉ. अबेडकर के शब्दों पर ध्यान नहीं दिया | 1 हज़ार तक भारत में रहकर मुसलमानों के दिमाग का जो रूप बना और भारत भूमि पर इस्लाम का आधिपत्य ज़माने की जो कसमे उन्होंने खायी थी, उन सबका विश्लेषण करके डॉ आंबेडकर ने दो राष्ट्र मानने का प्रस्ताव रखा था: मुस्लिम कौम और हिंदू राष्ट्र | लेकिन कांग्रेस के गले वह भी न उतरा | सत्ता की उतावली भूख और लालसा इस कदर बढ़ गयी थी कि अंग्रेज सरकार ने आज़ादी का वायदा जून 1948 का दिया था, लेकिन उसको जल्दी मचा कर पाकिस्तान और भारत के विभाजन की तिथि को 14/15 अगस्त 1947 करवा लिया | इस अन्तराल में आज़ादी की अदला-बदली हो सकती थी और लाखो हिन्दुओ का नरसंहार बचाया जा सकता था | किन्तु ऐसा नहीं हुआ |

असल में पाकिस्तान की मांग कोई आकस्मिक या अनायास जन-भावना-ज्वार नहीं था | बल्कि शताब्दियों पुराने पृथकतावादी चिन्ह, पृथक संस्कृति, अस्मिता, भाषा, कानूनों और रीति-रिवाजों का परिणाम था | कांग्रेस इस पृथक अस्मिता की मांग को ऐसे तथ्य के रूप में नहीं समझ पायी के यह भारत के विभाजन का कारण बन सकता है | या तो वह जान बूझ कर मुस्लिम षड्यंत्रों की उपेक्षा करती रही या वह इनसे पूर्णत: अनभिज्ञ रही |

जिन्ना और मुस्लिम लीग आग्रहपूर्वक कह रहे थे कि कांग्रेस हिंदू संस्था है और हिन्दुओ की आवाज़ है अत: उसे मुसलमानों के बारे में कुछ नहीं बोलना चाहिए | जिन्ना ने बलपूर्वक कहा कि मुसलमानों की प्रतिनिधि मुस्लिम लीग ही है और हिन्दुओ की कांग्रेस | लेकिन कांग्रेसी नेता अपने अज्ञान में इस विचार का विरोध करते रहे कि कांग्रेस हिंदू संस्था नहीं है, एक राष्ट्रीय संगठन है | इस कालसंधि में इसका अर्थ क्या था? जहाँ प्रत्येक व्यक्ति ने मान लिया कि मुसलमानों की प्रवक्ता मुस्लिम लीग है और मुसलमानों को भी यह विश्वास हुआ कि उनका भी कोई प्रतिनिधि संगठन है, वही हिन्दुओ का कोई प्रतिनिधि संगठन या प्रवक्ता नहीं था | हिन्दुओ ने सर्वाधिक मुर्खता यह की कि हिंदू महासभा का समर्थन करने के स्थान पर उन्होंने मुखविहीन कांग्रेस को समर्थन दिया | उन्होंने वीर सावरकर का अनुसरण नहीं किया जिन्होंने हिन्दुओ के लिए इतने बलिदान दिए थे | यह समर्थन कांग्रेस द्वारा ‘हिंदू संस्था’ होने से इनकार के बाद भी दिया जाता रहा | इसी समर्थन का परिणाम था विभाजन |

इस विभाजन ने सिद्ध कर दिया कि गाँधी जी अथवा कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टीकरण विभाजन को रोक नहीं सका | सारे समर्पण, नमन और प्रार्थनाएं मुस्लिमो को भारतीय और भारत को एक राष्ट्र बनाएं रखने में सफल नहीं हुई | कांग्रेस और गाँधी सभी हर समय अहिंसा, सहनशीलता, करुणा का सन्देश पहले से सहनशील हिन्दुओ को देते रहे, हिंदू-मुस्लिम एकता की शपथ खिलाते रहे और मुसलमानों के हाथो में उनकी सुरक्षा का आश्वासन देते रहे | इसने हिन्दुओ को निष्क्रियता की नींद सुला दिया | 10 मई 1947 को गाँधी जी ने जिन्ना और मुस्लिम लीग को यहाँ तक प्रस्तावित कर दिया था कि वे कांग्रेस को सम्मिलित किये बिना स्वयमेव ही स्वाधीन भारत का राज चला सकते है | इस हद तक तुष्टीकरण के बाद भी तथाकथित राष्ट्रीय मुसलमान तक भी विभाजन से थोडा पूर्व मुस्लिम लीग के सैनिक बनकर उसमे शामिल हो गये | दूसरी मुर्खता यह थी कि कांग्रेसी नेताओ ने भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल लार्ड माउंटबैटन को बनाया | 


यह माउंटबैटन ही था जो कश्मीर का विलय पाकिस्तान में चाहता था | इसी माउंटबैटन ने सीमा सुरक्षा के बड़े भाग को विभाजन के दिनों में भारत के अन्दर रखा जिसके कारण पाकिस्तान के अत्याचारों से हिन्दुओ को बचाने के लिए कोई सेना नहीं थी |

गाँधी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने की प्रतिज्ञा की और अपने सारे भाषणों, प्रयासों और कार्यो द्वारा मुसलमानों का तुष्टीकरण और उन्हें अंग्रेजो के विरुद्ध संघर्ष की मुख्यधारा में लाने का प्रयत्न करते रहे | उनका ऐसा ही कार्य था ‘खिलाफत आन्दोलन’ | डॉ आंबेडकर जी ने लिखा है कि – “मुसलमानों द्वारा 1919 में प्रारंभ किये गये आन्दोलन को गांधीजी ने इतनी दृढ़ता और जोश के साथ उठा लिया, जिसपर स्वयं मुसलमानों को भी अचंभा हुआ” |  ‘असहयोग’ का जन्म भी ‘खिलाफत’ की कोख हुआ; वह कांग्रेस की स्वराज्य-संघर्ष’ की संतान नहीं थी | वह खिलाफतियों द्वारा तुर्की की सहायता के लिए नयी तरफ से अंग्रेजो पर हमला था | अली बंधुओ, शौकत अली और मुहम्मद अली ने पुरे साल भर “खिलाफत आन्दोलन” के लिए दौड़-भाग की | डॉ आंबेडकर प्रश्न करते है कि क्या कोई बुद्धिमान व्यक्ति, हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए इतनी दूर तक जा सकता है? 

हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए गाँधी जी का खफ्त इतना जबर्दस्त था कि उन्होंने मुसलमानों द्वारा हिन्दुओ पर अत्याचार की नींदा नहीं की | गाँधी हिंसा के प्रत्येक कृत्य की निंदा करने में कभी नहीं चुकते थे और कांग्रेस को भी, उसकी इच्छा के विपरीत विवश करते थे | परन्तु गाँधी जी ने स्वामी श्रद्धानंद और लाला नानकचंद जैसे अनेक हिंदू नेताओ की हत्या का कभी विरोध नहीं किया | इसका मतलब वे हिंदू-मुस्लिम एकता की सुरक्षा केवल हिन्दुओ के बलिदान से चाहते थे | मालाबार के मोपलों द्वारा हिन्दुओ पर किये गये अत्याचारों का वर्णन नहीं किया जा सकता | धर्मांतरण के लिए तैयार न होने वाले हिन्दुओ को व्यापक रूप से मारा गया और एक लाख लोग वस्त्रो के अतिरिक्त सबकुछ छोड़ कर घरो से भगा दिए गये | जब कुछ खिलाफत नेताओ ने मोपलों को अपने धर्म-युद्ध में इतनी वीरता दिखाने पर बधाई के प्रस्ताव पारित किये तब भी गाँधी जी ने उसकी भर्त्सना करने की वजह मोपलों के बारे में लिखा कि वे बहादुर ‘खुदा-तर्स’ मोपले उस चीज़ के लिए जी-जान से लड़ रहे थे, जो वे अपना मजहब समझते थे और मजहब के मुताबिक जायज मानते थे | स्वामी श्रद्धानंद की हत्या करने वाले अपराधी रशीद का कचहरी में बचाव कांग्रेसी नेता आसफ अली ने किया | गाँधी जी ने हत्या सपष्टीकरण इन शब्दों में दिया, “मै तो उसे स्वामी जी की हत्या का अपराधी भी नहीं मानता | अपराधी वास्तव में वो है जो एक दुसरे के प्रति घृणा की भावनाएं भड़काते है |”

गाँधी जी की आँखे मुसलमानों की उनके प्रति अपमानजनक बातो से भी नहीं खुली | अलीगढ़ में 1924 में मुहम्मद अली ने एक सभा में कहा, “गाँधी जी का चरित्र कितना भी पवित्र क्यों न हो, मजहब के लिहाज से मेरी नज़र में हर मुसलमान, चाहे उसका इखलाक कितना भी गिरा हुआ क्यों न हो, गाँधी से ऊँचा है |” 1925 में उसने अपने इस वक्तव्य को पुन: लखनऊ में दोहराया | 1923 में काकीनाडा कांग्रेस में “वन्दे मातरम” का गान रोक दिया गया और उसकी जगह “रघुपति राघव राज राम” आ गया | उसे भी मुसलमानों ने गाने से इनकार कर दिया |

खिलाफत आन्दोलन के प्रभाव दो प्रकार के थे | एक तो कट्टरवादी मुसलमानों को राजनीति में मान्यता और इज्जत मिल गई | दुसरे राष्ट्र-भक्ति के ऊपर उनकी मजहब-परस्ती हावी हो गयी | बिखरे हुए असंगठित कमजोर मुसलमान कबीले इकट्ठे हो गये और गठजोड़ करके मजहबी धर्मांध लोगो के हाथो में नेतृत्व की डोर सौंप दी गयी |

मुस्लिम प्रेस ने भी मुसलमानों को भड़काया | बंगाल के ‘असरे-जदीद’ ने मुसलमानों को हिन्दुओ के ऊपर अपनी हुकूमत के ‘हजारो साल’ की याद दिलाते हुए, वर्तमान में इस्लाम के ऊपर “काफिरों” द्वारा प्रस्तुत चुनौती का सामना करने का जोश दिलाया | अपने 28 अप्रैल 1926 के अंक में कलकत्ता के ‘फारवर्ड’ ने एक उर्दू पत्रक का हवाला देते हुए कलकत्ते के मुसलमानों को सलाह दी, “एक मुसलमान की जान के बदले, सैकड़ो ‘काफिरों’ की जाने ले लेनी चाहिए | जहां कही कोई मारवाड़ी, बंगाली या पहाड़ी हिंदू मिले, उसे कत्ल कर डालो | तुम्हारी जितनी ताकत हो, मारते जाओ |” ये सब खिलाफत आन्दोलन के परिणाम थे |

एफ़. के. खान दुर्रानी ने लिखा: “हम अपने पुरखो के खुन से बेवफा नहीं हो सकते | अत: सारा हिंदुस्तान हमारी बपौती है और उसे फिर से इस्लाम के तले विजय करना चाहिए |”
1928 में प्रकाशित घोषणा पत्र में ख्वाजा हसन आजमी ने कहा: “मुसलमान हिन्दुओ से जुदा है | हिन्दुओ के साथ उनकी एकता असंभव है | हिंदू दुनिया में एक दुर्बल राष्ट्र है | वे आपसी झगड़ो से नहीं निबट पाए | मुसलमानों ने निश्चित रूप से शासन किया है और करेंगे |”

लाला लाजपत राय जैसे महान नेता ने अपने एक गुप्त पत्र में श्री चितरंजन दास को लिखा, “मैंने अपने पिछले 6 महीनों का अधिकांश समय मुस्लिम इतिहास और मुस्लिम कानून के अध्ययन में व्यतीत किया है और मेरा विचार बना है कि हिंदू-मुस्लिम एकता न तो संभव है और न व्यवहारिक, क्योंकि मुसलमान इस्लाम की अवहेलना नहीं कर सकता |”

महान नेता आंबेडकर ने मुस्लिम दिमाग को अच्छी तरह से पढ़ लिया था, जब उन्होंने 1940 के लगभग यह लिखा: “जो बात साफ़ देखी जा सकती है, वह यह है कि मुसलमानों ने राजनीति में गुंडागर्दी का तरीका अपना लिया है | दंगे पर्याप्त संकेत है कि राजनीति में गुंडागर्दी उनकी रणनीति का निश्चित अंग बन गयी है |”


श्री अरविंद ने 4 अप्रैल 1923 को अपनी सांयकालीन वार्ता ने शिष्यों से कहा: “मुझे खेद है उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का तमाशा बना दिया है | तथ्यों की उपेक्षा करने का कोई लाभ नहीं है | एक न एक दिन हिन्दुओ को मुसलमानों के साथ लड़ना पड़ सकता है और इसके लिए उन्हें पूरी तरह तैयार रहना चहिये | ‘हिंदू-मुस्लिम एकता’ का अर्थ हिन्दुओ की अवमानना नहीं होना चहिये | सर्वोत्तम समाधान है कि हिन्दुओ को अपना संगठन करने दो; ‘हिंदू-मुस्लिम एकता’ स्वयमेव अपने को संभालेगी | समस्या का समाधान अपने आप हो जायेगा |” 

इस प्रकार सब लोग नि:संकोच होकर गाँधी जी के हिंदू-मुस्लिम एकता के दुराग्रह की आलोचना कर रहे थे किन्तु फिर भी गाँधी जी और कांग्रेस के सत्तापदधारी लोग अपने कल्पना के संसार में जिए जा रहे थे |

आल इंडिया मुस्लिम लीग ने 1937 के अधिवेशन में भारत के लिए “मुकम्मिल आज़ादी” (पूर्ण स्वाधीनता) की मांग की | जिन्ना ने सारे भारत का दौरा किया और कांग्रेस को हिंदू पार्टी कहकर निंदा की | लीग ने “वन्दे मातरम्” विरोध किया और कांग्रेस ने केवल प्रथम दो छंदों को स्वीकार किया | उसने तिरंगे झंडे का प्रयोग और “वर्धा प्राथमिक शिक्षा” योजना का भी विरोध किया | जिन्ना ने 1939 तक की काल अवधि का उपयोग कांग्रेस शासित प्रान्तों में मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों का आरोप लगाकर मुस्लिम जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किया |
‘पाकिस्तान’ के विचार का सूत्र हमें डॉ मुहम्मद इकबाल के उद्गारो में मिलता है | 1930 में इलाहाबाद के मुस्लिम लीग सम्मेलन में डॉ इकबाल ने, मुसलमानों की पृथक अस्मिता के आधार पर एक अलग मुस्लिम राज्य या संघ (फेडरेशन) के निर्माण का आग्रह करते हुए तर्क प्रस्तुत किये: “ भारत में एक अलग मुस्लिम राज्य के निर्माण की मांग पूर्णत: तर्क-सम्मत है |..मैं पंजाब, सीमा प्रान्त, सिंध और बलोचिस्तान को मिलाकर एक अलग राज्य देखना चाहूँगा | उत्तरी पश्चिमी भारत के मुसलमानों का अंतिम लक्ष्य अंग्रेजी साम्राज्य के अन्दर या बाहर एक स्वतंत्र मुसलमानी राज कायम करना है”

इसके पीछे आया चौधरी रहमत अली का लिखा एक चौपन्ना: “अभी वर्ना कभी नहीं” | इस चौपन्ने में मुसलमानों को बाकी हिंदुस्तान से अलग होने का आग्रह किया गया था | उसमे मुसलमानों की पृथक सभ्यता और रीति-रिवाजो पर रौशनी डाली गयी थी और एक अलग राष्ट्रीयता का दावा प्रस्तुत किया गया था |

रहमत अली ने मुस्लिम लीग के पकिस्तान सम्बन्धी प्रस्ताव के बाद ही अपनी पाकिस्तान की परिभाषा को विस्तार रूप से सपष्ट किया | उसके पत्रक “मिल्लत और मिशन” में इंडिया की ‘दीनिया’ के रूप परिभाषा करते हुए सपष्ट किया गया था कि पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यको के साथ कैसा व्यवहार हो | वह भारत और पाकिस्तान के अल्पसंख्यको की पूर्णत: अदला-बदली चाहता था | वह पाकिस्तान में “सिर्फ मुसलमान” ही चाहता था |

जिन्ना ने 13 दिसंबर, 1946 को पाकिस्तान में ऐसे मुसलमानी राज्य के लिए जोशीला भाषण दिया जिसमे सिर्फ मुसलमान ही रहेंगे |


मुसलमानों ने “मुस्लिम नेसनल गार्ड्स’ की स्थापना की और गुंडों को भर्ती किया | इनकी कांग्रेस सेवा दल की तरह अहिंसा के प्रति कोई वचनबद्धता नहीं थी | इनको हथियारों का प्रशिक्षण दिया गया | जबकि हिंदू समाज को संगठित करने के लिए कांग्रेस द्वारा कुछ नहीं किया गया |

26 मार्च, 1940 को लाहौर में लीग ने अपना राष्ट्रीय अधिवेशन किया और पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित किया | मुस्लिम लीग ने भारत सरकार के 1935 के एक्ट में वर्णित संघीय ढाँचे को अस्वीकार कर दिया | जिन्ना ने आग्रहपूर्वक कहा कि रजनीतिक संरचना में कोई भी परिवर्तन मुस्लिम लीग की सहमति के बिना नहीं होना चहिये | उसने यह भी मांग की कि वायसराय के कार्यकारी परिषद् में कांग्रेस को मुस्लिम लीग को समानता देनी चहिये | वायसराय लिनलिथगो ने मुस्लिम लीग की मांग का साथ दिया और उससे मुसलमानों को वीटो-अधिकार मिल गया |

सत्ता के अविलम्ब हस्तांतरण का सै्टफोर्ड क्रिप्स प्रस्ताव, जिसमे संविधानिक वायसराय और युद्ध के पश्चात स्थायी व्यवस्था का प्रावधान था, कांग्रेस को स्वीकार्य नहीं हुआ क्योंकि सर सै्टफोर्ड ने अंतिम क्षणो में अल्पसंख्यको के प्रतिनिधित्व का प्रश्न उठा दिया |

इस घटना चक्र से निराश होकर कांग्रेस ने अगस्त, 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन की पुकार लगायी | अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस के बड़े नेताओ को जेलों में डाल दिया | कांग्रेसियों के जेल में रहते जिन्ना के लिए मुस्लिमो को संगठित करने का मौका मिला और उसने “इस्लाम खतरे में है” की घोषणा से राजनितिक परिदृश्य को भावनात्मक मोड़ दे दिया | लीग के लीडरों ने मुस्लिम जनता को एक अलग मुस्लिम राज्य होने के लाभ समझाएं |

हिंदू महासभा ने वीर सावरकर और डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में विभाजन के विरुद्ध आन्दोलन चलाया | सरदार संत सिंह ने 11 अप्रैल 1946 को लन्दन में एक सभा में घोषणा की, “ यदि अंग्रेजो ने भारत की जनता पर पाकिस्तान थोपने का प्रयत्न किया तो क्रांति हो जाएगी |”
गाँधी जी ने सितंबर 1944 में जिन्ना के साथ 11 बार बात की लेकिन जिन्ना बाते करने नहीं आया और वार्ता असफल हो गयी | इंग्लैंड की सरकार बदल गयी और मजदुर दल सत्ता में आ गया | प्रांतीय विधानसभाओ और केंद्रीय व्यवस्थापिका के चुनाव घोषित हुए | मुस्लिम-लीग के चुनाव-प्रवाह ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदू विरोधी प्रचार का रूप धारण किया | लीग ने सांप्रदायिक-विद्वेष की आग को बढाया और सज्जाद नशीन, पीर, मुल्ला और मौलाना घृणा भड़काने के लिए प्रचार में लाये गये | लोगो को राष्ट्रीय मुसलमानों को वोट न देने की चेतावनी दी गयी | फतवे जारी हुए और मुस्लिम जनता को यह बताया गया कि ‘राष्ट्रीय मुसलमान इस्लाम के शत्रु और हिंदू-कांग्रेस के जासूस है’, मस्जिदों का प्रयोग किया गया | राष्ट्रीय मुसलमानों को वोट देने वालों या उनके लिए काम करने वालो के विरुद्ध सामाजिक-बहिष्कार और विवाह विच्छेद की धमकियाँ दी गयी | मुस्लिम मतदाताओ को प्रभावित करने के लिए सरकारी अधिकारियो, अध्यापको और डाकियो आदि ने रात दिन काम किया | मुस्लिम प्रेस भी जुट गया और मुस्लिम लीग प्रचार को चुनावो में सफलता मिल गयी | फिर भी राष्ट्रीय-मुसलमानों को सिंध में 32 प्रतिशत और पंजाब में 30 प्रतिशत वोट मिले | परन्तु जिन्ना ने मुसलमानों की विजय का दावा किया और तर्क दिया कि 90% मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को वोट दिया है |

लार्ड वैवल ने, मुस्लिम लीग को मिलाकर या उसके बिना भी अंतरिम सरकार के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ करने का निश्चय किया और 6 अगस्त 1943 को उसने पंडित नेहरु को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया |

27 जुलाई, 1943 को मुस्लिम लीग परिषद की बैठक मुंबई में हुई और अपने प्रस्ताव में मुसलमानों को ‘सीधी कार्यवाही’ के लिए आह्वान किया | जिसका मतलब था एक-एक आदमी अपने एक मात्र संगठन मुस्लिम लीग के पीछे कमर कसकर खड़ा हो और हर प्रकार की शहादत के लिए तैयार हो |
“आपरेशन पाकिस्तान” का आरंभ हो गया, जब जिन्ना ने ‘सीधी-कार्यवाही’ का बिगुल बजाया | लियाकत अली खान ने कहा कि “सीधी-कार्यवाही” का मतलब है गैर-संविधानिक तरीके अपनाना |
सरदार अब्दुल ने रब निश्तार ने दावा किया, “पाकिस्तान सिर्फ खुन बहा कर हासिल हो सकता है |
यु.पी के ख्वाजा निजामुद्दीन ने कहा कि ‘लीग वाले’ ‘अहिंसा’ के साथ नहीं बंधे है |”

‘सीधी-कार्यवाही’ के आरंभ के लिए बंगाल को चुना गया क्योंकि वहां एक शक्तिशाली मुस्लिम सरकार थी और मुख्यमंत्री सोहरावर्दी था | उसी के सुझाव पर कलकत्ता को हिन्दुओ के हत्याकांड को आरंभ करने के लिए चुना गया | कलकत्ते के महापौर एस.एम. उस्मान ने हस्ताक्षरों के साथ 16 अगस्त के दिन हड़ताल घोषित हुई और गुंडों को खुला मैदान मिल गया | पर्चे छापे गये और एक विशाल सभा का कार्यक्रम बना जिसमे सोहरावर्दी की स्पीच तय हुई | अपनी स्पीच में उसने कहा कि लीग ‘सीधी-कार्यवाही’ रमजान के महीने में इसलिए शुरू कर रही है क्योंकि रमजान के महीने ही पैगंबर ने मक्का फ़तह की थी और अरब में इस्लाम का राष्ट्रमंडल स्थापित हुआ था |
एक दुसरे परचे में जिहाद के लिए मुनाजात (हर मस्जिद में नमाज़ के बाद दुआ) बताई गयी थी: हमे काफ़िरो के ऊपर फतह बख्शो..| हमें हिंदुस्तान में इस्लाम की हुकूमत कायम करने की ताकत दो |
बंगाली में प्रकाशित एक चौपन्ना “मुघुर” और भी स्पष्ट था: “मुसलमान नेताओ के ‘कायदे-ऐजम’ की तरफ से विद्रोह का ऐलान हुआ है | यही हम चाहते है | बहादुरों की कौम की यही पालिसी होनी चहिये |

एक और पर्चे में, जिन्ना के हाथ में एक तलवार दिखाते हुए कहा था: “इस्लाम की तलवार आसमान पर चमकती रहनी चाहिए | ओ काफिरों! तुम्हारा अंत दूर नहीं है और कत्ले-आम होने वाला है”
‘सीधी-कार्यवाही’ का दिन अपने साथ हिन्दुओ के घोर प्राण-संकट लेकर आया | पुलिस को चुप रहने के आदेश थे | 4 दिन तक कलकत्ता जलता रहा | एक गृह विभाग अधिकारी के अनुसार 4000 से ऊपर लोगो की हत्या और 10,000 लोग घायल हुए | चौबीस परगना में भी पुलिस के रिकॉर्ड में 2500 लूट-अग्निकांड और विध्वंश की घटनाएँ आलेखित है |  कार्नवालिस रोड के राधा कृष्ण मंदिर और कोलिज स्ट्रीट के शीतला मंदिर जला कर भस्म कर दिए गये थे |





नोआखाली तिपेरा में 29 अगस्त 1946 का ईद का दिन हिंदू विरोधी अभियान के लिए प्रयोग हुआ | सितंबर  1946 में पीर गुलाम सरवर ने नेतृत्व ग्रहण किया और हिन्दुओ की संपति और दुकाने लूटी गयी | मंदिरों को जला दिया गया और डर दिखाकर धर्मांतरण किया गया | गाँधी जी की उपस्थिति में श्रम-मंत्री मनोरंजन चौधरी ने बताया कि 18,000 घर धौंक दिए गये और 60,000 घर दंगो में लुटे गये | 5,000 से ऊपर हिंदू मारे गये और हजारो का धर्मांतरण हुआ तथा लाखो को क्षेत्र छोड़कर जान पड़ा |

जब बिहार का हिंदू कलकत्ते और पूर्वी बंगाल में हुई हिन्दुओ की हत्याओ से दुखी हुआ तो अक्तूबर-नवम्बर 1946 में 12 दिन उन्होंने मुसलमानों पर प्रतिकारात्मक आक्रमण किये | पुलिस ने तुरंत कार्यवाही की और नेहरु पटना व मुंगेर भागे-भागे गये और हिन्दुओ को लताड़ा | 


गाँधी जी के सुझावों पर हिंदू शरणार्थी-शिविरों में गये और मुसलमानों को उनके घरो में वापिस लाया गया | गाँधी जी ने हिन्दुओ द्वारा धन एकत्रित करवाया और मुसलमानों को खिलाया-पिलाया | हिन्दुओ ने इस काम के लिए गाँधी जी को अपने गहने तक दिए |

कलकत्ता-दंगो के पश्चात् लोर्ड वैवल ने अंतरिम सरकार के तुरंत पग उठाये | अंतरिम सरकार ने 3 सितंबर 1946 को बागडोर संभाली | लेकिन मुस्लिम लीग ने ‘सीधी कार्यवाही’ बंद नहीं की और काफी सौदेबाजी के बाद 24 अक्तूबर 1946 को “कैबिनेट मिशन योजना” स्वीकार किये बिना सरकार में इसलिए शामिल हुई कि कांग्रेस की स्थिति को मजबूत नहीं होने देना है | संविधान की सभा की बैठक 9 दिसम्बर 1946 को मुस्लिम लीग प्रतिनिधियों के बिना हुई | उलझन में फसी अंग्रेज सरकार ने 20 फ़रवरी 1947 को यह घोषणा कर दी कि जून 1948 से पहले वह भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण कर देगी | ब्रिटेन ने लार्ड वैवल के स्थान पर लार्ड माउंटबेटन को वायसराय बनाने की घोषणा की और सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की सहमती लेकर अंग्रेज सरकार ने भारत-विभाजन की योजना की | 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वाधीनता की घोषणा अंग्रेज सरकार ने 3 जून 1947 को कर दी |


कांग्रेस ने विभाजन की योजना स्वीकार की और 24-25 जून को हुई बैठको में चोइथराम गिदवानी और लाला जगत नारायण ने विभाजन-योजना का विरोध किया | लेकिन समाजवादी जो सदा विभाजन का विरोध करते आये उन्होंने कोई कोई आवाज़ नहीं उठाई | गाँधी जी ने, जो सदा आग्रहपूर्वक घोषित करते थे कि “भारत का विभाजन मेरी लाश पर ही होगा”, इस विभाजन-योजना को स्वीकार करने की संस्तुति की |

स्वयं कृपलानी ने बाद में बताया कि कांग्रेस समिति की बैठक में विभाजन का भारी विरोध था और “विभाजन-योजना की स्वीकृति का प्रस्ताव गांधी जी के परामर्श के बिना पारित नहीं हो सकता था |
सरदार पटेल जी ने भी विभाजन को ‘शरीर को बचाने के लिए असाध्य अंग को काट कर देने की विवशता’ के रूप में समर्थन दिया |

15 अगस्त 1947 को भारत की स्वाधीन हो गया और देश का बटवारा मजहब के आधार पर हो गया | किन्तु आज तक उस अल्पसंख्यक समस्या का समाधान नहीं हुआ जिसके कारण विभाजन हुआ | 1947 में विभाजन के समय मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान को एक इस्लामी राज्य घोषित किया लेकिन स्वातंत्र्य वीर सावरकर जैसे दृष्टाओं के बार-बार आग्रह पर भी खंडित हिंदुस्तान को हिंदू राज्य घोषित करना अस्वीकार कर दिया गया | पंडित नेहरु ने ने 1947 को अपने एक भाषण में कहा: “जब तक शासन की बागडोर मेरे हाथ में है, भारत कभी हिंदू राज्य नहीं बन सकता |

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