Wednesday 3 December 2014

श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन - एक सतत संघर्ष

यह एक स्थापित सत्य है कि मुग़ल आक्रंताओ ने बार-बार हिन्दुओ का दमन एवं उन पर इस्लाम की श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयत्न किया | उन्होंने हजारो मंदिर तोड़ेजिनमे से 4 पवित्र स्थान है : अयोध्यामथुराकाशी एवं सोमनाथ | मुगल आक्रंताओ ने इन सभी जगह पर मस्जिद जैसा ढांचा बनाने का प्रयत्न किया | इनमे से भगवान् सोमनाथ के मंदिर की पुन्रप्रतिष्ठा तो आज़ादी के बाद हो गयीकिन्तु शेष अभी खंडित रूप में है |


परमात्मा की यह शाश्वत घोषणा है कि 'जब-जब धर्म को समाप्त करने का कुचक्र रचा जायेगातब-तब वह स्वयं धरती पर आकर धर्म की स्थपना करेंगे और सज्जन शक्तियों का संरक्षण करेंगे' |

1526 में बाबर अयोध्या आया और सरयू के किनारे डेरा डाला | भारत पर विजय के लक्ष्य को लेकर वो अपने धर्मगुरु से मिला | उन्होंने बाबर को श्री रामजन्मभूमि के मंदिर को तोड़ने की सलाह दी | सन 1528 में अयोध्या में राम मंदिर को उसने तोड़ने का प्रयास किया लेकिन प्रचंड हिन्दू प्रतिकार के कारण सफल नहीं हुआ | इस कारण वहां न तो मीनार बन सकी और न ही वजू करने का स्थान | इसलिए निर्माण केवल एक ढांचा थामस्जिद कदापि नहीं |

जन्मभूमि को पुन: प्राप्त करने के लिए हिन्दुओ की ओर से सन 1528 से 1934 तक 76 युद्ध लड़े गये | 1934 का संघर्ष ऐसा समय था जब वहाँ मुस्लिम गये ही नहीं | अयोध्या में 1934 में एक गाय काट देने के कारण हिन्दू समाज में जबरदस्त आक्रोश फ़ैल गया था | गो हत्यारों को अपनी जान देनी पड़ी और कुछ हिन्दुओ का भी बलिदान हुआ | इतने उत्तेजित हिंन्दु समाज ने कथित बाबरी ढांचे पर आक्रमण कर इसके तीन गुम्बदो को क्षतिग्रस्त कर सम्पूर्ण परिसर को अपने अधिकार में ले लिया | लेकिन अंग्रेजो के चलते कब्ज़ा ज्यादा दिन नहीं रहा और गुम्बदो की मरम्मत के लिए अंग्रेजो ने हिन्दुओ से टैक्स वसूला | इस घटना के बाद न तो वहां कोई मुसलमान जाने की हिम्मत जुटा पाया और न ही वहां कभी नमाज पढ़ी गयी |

सतत संघर्ष का रूप आज़ादी के बाद 22 दिसम्बर, 1949 की अर्धरात्रि में देखने को मिला जब ढांचे के अन्दर भगवान् प्रकट हुए | इस प्राकट्य के पश्चात 6 दिसम्बर 1992 तक उसी स्थान पर विधिवत त्रिकाल पूजन आरती भोग होता रहा | जिसके लिए एक पुजारी को नियुक्त किया गया था | इस सब के पश्चात 7 अक्टूबर, 1984 से 6 दिसम्बर, 1992 तक का 77वाँ लोकतान्त्रिक चरणबद्ध संघर्ष चला |

प्रथम चरण: मार्च, 1983 में मुज्जफरनगर में हिन्दू सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमे श्री गुलजारी लाल नंदा और श्री दाऊदयाल खन्ना की विशेष उपस्थिति रही | इस सम्मलेन में श्री दाऊदयाल खन्ना जी ने अयोध्यामथुरा और काशी के तीनो धर्मस्थानों की मुक्ति का आग्रह श्रीमती इंदिरा गाँधी को पत्र लिखकर किया | इसके पश्चात सन 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रथम धर्मसंसद का अधिवेशन हुआ जिसमें 575 धर्माचार्यो की उपस्थिति रही | 7 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में सरयू के किनारे ताला खुलवाने के लिए संकल्प सभा का आयोजन हुआ जिसमे लगभग 20 हज़ार संत एवं भक्त उपस्थित रहे | 8 अक्टूबर 1984 से लखनऊ के लिए पदयात्रा प्रारंभ हुई  और 14 अक्टूबर को लखनऊ के वाटिका पार्क में लगभग 5 लाख लोगो की उपस्थिति में विराट धर्मसभा हुई | अक्टूबर 1985 में उडुपी में द्वितीय धर्मसंसद हुई जिसमे 850 पूज्य धर्माचार्यों की उपस्थिति रही | संतो द्वारा महाशिवरात्रि 1986 तक ताला न खोलने पर अयोध्या में सत्याग्रह का निर्णय हुआ और दिगम्बर अखाड़े के श्रीमहंत परमहंस रामचन्द्रदास जी महाराज ने ताला न खोलने पर आत्मदाह की घोषणा की | इसके पश्चात 1 फरवरी, 1986 को जिला न्यायधीश श्री के.एम.पाण्डेय ने ताला खोलने का आदेश दिया |

द्वितीय चरण: पूज्य संतो ने विचार किया कि  केवल ताला खुलवाना हमारा मकसद नहीं बल्कि आक्रंताओ द्वारा जो अपमान हुआ उसका परिमार्जन होना चाहिए |  इसके बाद श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ और मंदिर के प्रारूप की चयन प्रक्रिया शुरू हुई | जनवरी, 1989 में प्रयागराज महाकुम्भ के अवसर पर तृतीय धर्मसंसद का आयोजन हुआ और पूज्य देवराहा बाबा जी की उपस्थिति के साथ ही 10,000 संत और लाखो भक्त इसमें शामिल हुए |  इसके बाद प्रत्येक गाँव से एक शिला और प्रत्येक व्यक्ति से सवा रुपए लेने का अभियान आरम्भ हुआ |  2.75 लाख गाँवों में 6 करोड़ व्यक्तियों ने पूजन किया और 9 नवम्बर को शिलान्यास की घोषणा हुई | 16  18 अक्टूबर को मुस्लिम वक्फ बोर्ड द्वारा शिलान्यास रोकने के लिए दायर किये गये दोनों प्रार्थना पत्र लखनऊ पूर्णपीठ द्वारा अस्वीकार कर दिए गये | इसके बाद 1989 में दो याचिकाएं ( 1137 तथा 1152 ) सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई जिनको 27 अक्टूबर, 1989 को न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया | इसके बाद 8 नवम्बर, 1989 को गृह मंत्री बूटा सिंह व सैयद शहाबुद्दीन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी और अन्य प्रशासनिक अधकारियों की बैठक में लखनऊ में शामिल हुए | जिसके बाद शिलान्यास वाले मुकदमे में निर्णय हुआ कि विवादित भूमि की सीमा के बाहर शिलान्यास निश्चित समय और निश्चित स्थान पर होगा | 9 नवम्बर, 1989 को शिलान्यास स्थल पर खुदाई प्रारम्भ हुई और यह कार्य 10 नवम्बर, 1989 को बिहार के दलित बंधू कामेश्वर चौपाल द्वारा हजारो संतो व भक्तो की उपस्थिति में वेद मंत्र एवं शंख ध्वनि के मध्य संपन्न हुआ |  

शिलान्यास
11, नवम्बर 1989 को फैजाबाद के जिलाधीश ने आगे के निर्माण को रोकने का आदेश दिया और सब संत वापिस आ गए | जनवरी, 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह को विवाद सुलझाने के लिए संतो ने चार माह का समय दिया |

तृतीय चरण: अगस्त1990 में मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम शुरू हुआ | 2324 जून को हरिद्वार के भारत माता मंदिर में मार्गदर्शक मंडल की बैठक हुई और 30 अक्टूबर 1990 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा की घोषण हुई |  पूज्य संतो द्वारा हिन्दू समाज का आह्वान हुआ कि दीपावली में रामज्योति से ही दीपक जलाएं | अयोध्या में अरणि मंथन से प्राप्त अग्नि द्वारा प्रज्वलित राम ज्योति को सम्पूर्ण देश में पहुँचाया गया 


Ramjyoti
उत्तरप्रदेश सरकार ने ज्योति को राज्य में प्रतिबंधित कर दिया और कारसेवा रोकने के लिए यह घोषणा  की कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा” |  अयोध्या जाने वाली सभी ट्रेनबस रद्द कर दी गयी और 40 बटालियन पैरा मिलिट्री फ़ोर्स तैनात कर दी गयी | बड़ी-बड़ी खाई खोदी गई और कंटीले तार बाँध दिए गये | 23 अक्टूबर को भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी जी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया | 


पत्रकारों ने कहा कि ढांचे पर कोई एक फावड़ा भी फेंक दे तो कारसेवा मान लेंगे |  इसे रामभक्तो ने चुनौती माना और चलो अयोध्या के नारे पर देशभर के लाखो कारसेवक अयोध्या की ओर चल पड़े | गाँव-गाँव में कारसेवको का स्वागत हुआ, भोजन आदि की वयवस्था श्रीराम की प्रेरणा से हुई | उत्तरप्रदेश में गिरफ्तारियां आरंभ हो गई और सब जिलो में जेले कारसेवको से भर गयी | 30 अक्टूबर को कारसेवा के दिन पूज्य स्वामी वामदेव, श्री अशोक सिंघल एवं श्री श्रीशचंद्र दीक्षित जी कारसेवा करने के लिए अयोध्या ही नहीं बल्कि ढांचे तक पहुँच गए |   
Shri Ashoke Singhal At Karsewa
31 अक्टूबर एवं नवम्बर को विश्राम के पश्चात नवम्बर को पुन: कारसेवक निकले | लेकिन सरकार का क्रूर चेहरा उजागर हुआ और सुनियोजित योजना के तहत कारसेवको पर गोलियों की बौछार हुई व नरसंहार के षड़यंत्र का क्रियान्वयन हुआ कोठारी बंधुओ सहित अनेको कारसेवक हुतात्मा हो गये मंदिर निर्माण के लिए 40 दिन का सत्याग्रह चला कारसेवको की अस्थिकलश यात्रायें प्रारंभ हुई और जनवरी 1991 में प्रयागराज में इन अस्थियों का विसर्जन हुआ 
 कोठारी बंधुओ सहित अनेको कारसेवक हुतात्मा हो गये

अप्रैल 1991 में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा दिल्ली में महारैली का आयोजन 25 लाख की ऐतिहासिक उपस्थिति के साथ हुआ उसी दिन विश्वनाथ प्रताप सिंह का पतन हो गया |

विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा दिल्ली में महारैली
चतुर्थ चरण: विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के पतन पश्चात श्री चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने और उन्होने वार्ता का सुझाव दिया | 1 दिसम्बर, 1990 को विश्व हिन्दू परिषद् बाबरी मस्जिद एक्सन कमेटी और सरकारी प्रतिनिधियों की बैठक में वार्ता प्रारंभ हुई | 4 दिसम्बर, 1990 को दूसरी बैठक में तत्कालीन गृह राज्यमंत्रीउत्तरप्रदेशमहाराष्ट्र और राजस्थान के मुख्यमंत्री व श्री भैरो सिंह शेखावत उपस्थित रहे सोहार्दपूर्ण समाधान के लिए यह निर्णय हुआ कि दोनों पक्षों के लोग 22 दिसम्बर 1990 तक अपने साक्ष्य गृह राज्यमंत्री को उपलब्ध कराएँ दोनों को एक दुसरे के साक्ष्यो का प्रत्युत्तर जनवरी 1991 तक देना था विश्व हिन्दू परिषद् ने बाबरी मस्जिद एक्सन कमेटी के दावो को निरस्त करते हुए प्रत्युत्तर दिया जबकि कमेटी ने केवल अपने पक्ष को और अधिक प्रमाणित करने वाली फोटोप्रतियां दी | 10 जनवरी, 1991 को गुजरात भवन में बैठक हुई और निर्णय लिया गया कि प्रस्तुत दस्तावेजो को ऐतहासिकपुरातात्विकराजस्व और विधि शीर्षक के अन्तरगत वर्गीकरण कर लिया जाए यह भी तय हुआ कि दोनों पक्ष अपने विशेषज्ञो के नाम देंगे जो संबंधित दस्तावेजो का अध्ययन करके 24,25  26 जनवरी को मिलेंगे और अपनी टिप्पणी फरवरी, 1991 तक देंगे लेकिन बाबरी मस्जिद कमेटी ने अपने नाम दिए ही नहीं | 24 जनवरी को जो विशेषज्ञ आये वो कमेटी की कार्यकारिणी के पदाधिकारी थे | 25 जनवरी की बैठक में भी कोई नहीं आया जबकि विश्व हिन्दू परिषद् के प्रतिनिधि और विशेषज्ञ घंटे तक इंतज़ार करते रहे वार्ताओ का दौर 25 जनवरी 1991 तक चला अंतत: वार्तालाप बंद हो गयी |

विश्व हिन्दू परिषद् के प्रतिनिधि और सरकारी प्रतिनिधि
देश में आम चुनाव हुए और नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने जून 1992 में ढांचे के सामने समतलीकरण हुआ और अनेको प्राचीन मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए |  जुलाई 1992 में सर्वदेव अनुष्ठान हुआ और मंदिर के चबूतरे का निर्माण हुआ लेकिन प्रधानमंत्री ने काम रोकने के लिए संतो से निवेदन किया | सम्पूर्ण देश में विजयादशमी 6 अक्टूबर 1992 से दीपावली 25 अक्टूबर तक श्री राम चरण पादुका पूंजा कार्यक्रम हुआ | जिसके माध्यम से कारसेवको की भर्ती की गई | 30 अक्टूबर, 1992 को दिल्ली में पांचवी धर्मसंसद में 6 दिसम्बर 1992 को पुन: कारसेवा की घोषणा हुई | इसके पूर्व उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा अधिग्रहित 2.77 एकड़ भूखंड में उच्च न्यायालय का निर्णय आने की अपेक्षा थी लेकिन निर्णय सुनाने की तिथि 11 दिसम्बर, 1992 घोषित हुई |  लेकिन प्रथम कारसेवा के मार्गो के अवरुद्ध होने के अनुभव के कारण 6 दिसम्बर की घटना को टाला नहीं जा सकता था यही ईश्वरीय इच्छा थी |


इतिहास अचानक घटित होता है न कि योजनापूर्वक लिखा जाता है | ढांचा 5 घंटे में ही सरयू में प्रवाहित हो गया | कारसेवको ने आनन-फानन में तिरपाल का मंदिर बनाया और पुन: वहां रामलला विराजमान हो गए | 8 दिसम्बर, 1992 को ब्रह्म मुहर्त में केंद्रीय सुरक्षा बलों ने सम्पूर्ण परिसर को अपने कब्जे में ले लिया | सुरक्षा बलो की देखरेख में पुजारी द्वारा पूजा होने लगी | 21 दिसंबर, 1992 को अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर न्यायमूर्ति श्री हरिहरनाथ और श्री ए.एन. गुप्ता की खंडपीठ ने 1 जनवरी. 1983 को अपने निर्णय द्वारा हिन्दू समाज को आरतीदर्शनपूजा-भोग का अधिकार दे दिया |

1937 में उठे श्रीराम जन्मभूमि विवाद पर अपने पत्र में महात्मा गाँधी जी ने लिखा था – “धार्मिक दृष्टिकोण से एक मुसलमान यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसकी मस्जिद मेंजिसमे वह बराबर खुदा की इबादत करता आ रहा हैकोई हिन्दू उसमे बुत ले जाकर रख दे | उसी तरह एक हिन्दू भी कभी यह सहन नहीं करेगा कि उसके उस मंदिर मेंजहां वह बराबर रामकृष्णशंकरप्रभु और देवी की उपासना करता चला आ रहा हैकोई उसे तोड़कर मस्जिद बाना दे | जहां पर ऐसे काण्ड हुए हैवास्तव में ये चिन्ह धार्मिक गुलामी के है” | 






1 comment:

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