यह
एक स्थापित सत्य है कि मुग़ल आक्रंताओ ने बार-बार हिन्दुओ का दमन एवं उन पर इस्लाम
की श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयत्न किया | उन्होंने हजारो
मंदिर तोड़े, जिनमे से 4 पवित्र स्थान है : अयोध्या, मथुरा, काशी एवं सोमनाथ | मुगल आक्रंताओ ने इन
सभी जगह पर मस्जिद जैसा ढांचा बनाने का प्रयत्न किया | इनमे से भगवान् सोमनाथ के मंदिर की पुन्रप्रतिष्ठा तो आज़ादी के बाद हो गयी, किन्तु शेष अभी खंडित रूप में है |
परमात्मा
की यह शाश्वत घोषणा है कि 'जब-जब धर्म को समाप्त करने का कुचक्र रचा जायेगा, तब-तब वह स्वयं धरती पर आकर धर्म की स्थपना करेंगे और सज्जन शक्तियों का
संरक्षण करेंगे' |
1526 में बाबर अयोध्या आया और सरयू के किनारे डेरा डाला | भारत पर विजय के लक्ष्य को लेकर वो अपने धर्मगुरु से मिला | उन्होंने बाबर को श्री रामजन्मभूमि के मंदिर को तोड़ने की सलाह दी | सन 1528 में अयोध्या में राम मंदिर को
उसने तोड़ने का प्रयास किया लेकिन प्रचंड हिन्दू प्रतिकार के कारण सफल नहीं हुआ | इस कारण वहां न तो मीनार बन सकी और न ही वजू करने का स्थान | इसलिए निर्माण केवल एक ढांचा था, मस्जिद
कदापि नहीं |
सतत
संघर्ष का रूप आज़ादी के बाद 22 दिसम्बर, 1949 की अर्धरात्रि में देखने को मिला जब ढांचे के अन्दर भगवान् प्रकट हुए | इस प्राकट्य के पश्चात 6 दिसम्बर 1992 तक उसी स्थान पर विधिवत त्रिकाल पूजन आरती भोग होता रहा | जिसके लिए एक पुजारी को नियुक्त किया गया था | इस सब के पश्चात 7 अक्टूबर, 1984 से 6 दिसम्बर, 1992 तक का 77वाँ लोकतान्त्रिक चरणबद्ध संघर्ष चला |
प्रथम
चरण: मार्च, 1983 में मुज्जफरनगर में हिन्दू सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमे श्री गुलजारी लाल
नंदा और श्री दाऊदयाल खन्ना की विशेष उपस्थिति रही | इस सम्मलेन में श्री दाऊदयाल खन्ना जी ने अयोध्या, मथुरा
और काशी के तीनो धर्मस्थानों की मुक्ति का आग्रह श्रीमती इंदिरा गाँधी को पत्र
लिखकर किया | इसके पश्चात सन 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रथम धर्मसंसद का अधिवेशन हुआ जिसमें 575 धर्माचार्यो की उपस्थिति रही | 7 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में सरयू के किनारे ताला खुलवाने के लिए संकल्प सभा का आयोजन
हुआ जिसमे लगभग 20 हज़ार संत एवं भक्त उपस्थित रहे |
8 अक्टूबर 1984 से लखनऊ के लिए
पदयात्रा प्रारंभ हुई और 14 अक्टूबर को लखनऊ के वाटिका पार्क में लगभग 5 लाख लोगो की उपस्थिति में विराट धर्मसभा हुई | अक्टूबर 1985 में उडुपी में द्वितीय
धर्मसंसद हुई जिसमे 850 पूज्य धर्माचार्यों की
उपस्थिति रही | संतो द्वारा महाशिवरात्रि 1986 तक ताला न खोलने पर अयोध्या में सत्याग्रह का निर्णय हुआ और दिगम्बर अखाड़े
के श्रीमहंत परमहंस रामचन्द्रदास जी महाराज ने ताला न खोलने पर आत्मदाह की घोषणा
की | इसके पश्चात 1 फरवरी, 1986 को जिला न्यायधीश श्री
के.एम.पाण्डेय ने ताला खोलने का आदेश दिया |
शिलान्यास |
11, नवम्बर 1989 को फैजाबाद के जिलाधीश ने आगे
के निर्माण को रोकने का आदेश दिया और सब संत वापिस आ गए | जनवरी, 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह को विवाद
सुलझाने के लिए संतो ने चार माह का समय दिया |
Ramjyoti |
उत्तरप्रदेश
सरकार ने ज्योति को राज्य में प्रतिबंधित कर दिया और कारसेवा रोकने के लिए यह
घोषणा की कि “अयोध्या में परिंदा भी पर
नहीं मार सकेगा” | अयोध्या
जाने वाली सभी ट्रेन, बस रद्द कर दी गयी और 40 बटालियन पैरा मिलिट्री फ़ोर्स
तैनात कर दी गयी | बड़ी-बड़ी खाई खोदी गई और
कंटीले तार बाँध दिए गये | 23 अक्टूबर को भाजपा नेता
लालकृष्ण आडवानी जी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया |
पत्रकारों
ने कहा कि ढांचे पर कोई एक फावड़ा भी फेंक दे तो कारसेवा मान लेंगे | इसे
रामभक्तो ने चुनौती माना और चलो अयोध्या के नारे पर देशभर के लाखो कारसेवक अयोध्या
की ओर चल पड़े | गाँव-गाँव में कारसेवको का स्वागत हुआ,
भोजन आदि की वयवस्था श्रीराम की प्रेरणा से हुई | उत्तरप्रदेश में गिरफ्तारियां आरंभ हो गई और सब जिलो में जेले कारसेवको से
भर गयी | 30 अक्टूबर को कारसेवा के दिन पूज्य स्वामी वामदेव,
श्री अशोक सिंघल एवं श्री श्रीशचंद्र दीक्षित जी कारसेवा करने के
लिए अयोध्या ही नहीं बल्कि ढांचे तक पहुँच गए |
Shri Ashoke Singhal At Karsewa |
31 अक्टूबर एवं 1 नवम्बर
को विश्राम के पश्चात 3 नवम्बर
को पुन: कारसेवक निकले | लेकिन सरकार का क्रूर चेहरा उजागर हुआ और सुनियोजित
योजना के तहत कारसेवको पर गोलियों की बौछार हुई व नरसंहार के षड़यंत्र का
क्रियान्वयन हुआ | कोठारी
बंधुओ सहित अनेको कारसेवक हुतात्मा हो गये | मंदिर निर्माण के लिए 40 दिन का सत्याग्रह चला | कारसेवको की अस्थिकलश यात्रायें प्रारंभ हुई और जनवरी 1991 में प्रयागराज में इन
अस्थियों का विसर्जन हुआ |
कोठारी बंधुओ सहित अनेको कारसेवक हुतात्मा हो गये |
4 अप्रैल 1991 में विश्व हिन्दू परिषद्
द्वारा दिल्ली में महारैली का आयोजन 25 लाख की ऐतिहासिक उपस्थिति के
साथ हुआ | उसी दिन
विश्वनाथ प्रताप सिंह का पतन हो गया |
विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा दिल्ली में महारैली |
चतुर्थ चरण: विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के पतन पश्चात श्री चंद्रशेखर
प्रधानमंत्री बने और उन्होने वार्ता का सुझाव दिया | 1 दिसम्बर, 1990 को विश्व हिन्दू परिषद् , बाबरी मस्जिद एक्सन कमेटी और
सरकारी प्रतिनिधियों की बैठक में वार्ता प्रारंभ हुई | 4 दिसम्बर,
1990 को दूसरी बैठक में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के
मुख्यमंत्री व श्री भैरो सिंह शेखावत उपस्थित रहे | सोहार्दपूर्ण
समाधान के लिए यह निर्णय हुआ कि दोनों पक्षों के लोग 22 दिसम्बर 1990 तक
अपने साक्ष्य गृह राज्यमंत्री को उपलब्ध कराएँ | दोनों को
एक दुसरे के साक्ष्यो का प्रत्युत्तर 6 जनवरी 1991 तक
देना था | विश्व
हिन्दू परिषद् ने बाबरी मस्जिद एक्सन कमेटी के दावो को निरस्त करते हुए
प्रत्युत्तर दिया जबकि कमेटी ने केवल अपने पक्ष को और अधिक प्रमाणित करने वाली
फोटोप्रतियां दी | 10 जनवरी, 1991 को गुजरात भवन में बैठक हुई और
निर्णय लिया गया कि प्रस्तुत दस्तावेजो को ऐतहासिक, पुरातात्विक, राजस्व और विधि शीर्षक के अन्तरगत वर्गीकरण कर लिया जाए | यह भी तय
हुआ कि दोनों पक्ष अपने विशेषज्ञो के नाम देंगे जो संबंधित दस्तावेजो का अध्ययन
करके 24,25 व 26 जनवरी को
मिलेंगे और अपनी टिप्पणी 5 फरवरी, 1991 तक देंगे | लेकिन
बाबरी मस्जिद कमेटी ने अपने नाम दिए ही नहीं | 24 जनवरी को जो विशेषज्ञ आये वो
कमेटी की कार्यकारिणी के पदाधिकारी थे | 25 जनवरी की बैठक में भी कोई
नहीं आया जबकि विश्व हिन्दू परिषद् के प्रतिनिधि और विशेषज्ञ 2 घंटे तक
इंतज़ार करते रहे | वार्ताओ का दौर 25 जनवरी 1991 तक चला | अंतत: वार्तालाप बंद हो गयी |
विश्व हिन्दू परिषद् के प्रतिनिधि और सरकारी प्रतिनिधि |
देश
में आम चुनाव हुए और नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने | जून 1992 में
ढांचे के सामने समतलीकरण हुआ और अनेको प्राचीन मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए | जुलाई 1992 में सर्वदेव अनुष्ठान हुआ और मंदिर के चबूतरे का निर्माण हुआ लेकिन
प्रधानमंत्री ने काम रोकने के लिए संतो से निवेदन किया | सम्पूर्ण देश में विजयादशमी 6 अक्टूबर 1992 से दीपावली 25 अक्टूबर तक श्री राम चरण
पादुका पूंजा कार्यक्रम हुआ | जिसके माध्यम से
कारसेवको की भर्ती की गई | 30 अक्टूबर,
1992 को दिल्ली में पांचवी धर्मसंसद में 6 दिसम्बर 1992 को पुन: कारसेवा की घोषणा
हुई | इसके पूर्व उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा
अधिग्रहित 2.77 एकड़ भूखंड में उच्च न्यायालय का
निर्णय आने की अपेक्षा थी लेकिन निर्णय सुनाने की तिथि 11 दिसम्बर, 1992 घोषित हुई | लेकिन प्रथम कारसेवा के मार्गो के अवरुद्ध होने के अनुभव के कारण 6 दिसम्बर की घटना को टाला नहीं जा सकता था यही
ईश्वरीय इच्छा थी |
इतिहास
अचानक घटित होता है न कि योजनापूर्वक लिखा जाता है | ढांचा 5 घंटे में
ही सरयू में प्रवाहित हो गया | कारसेवको ने
आनन-फानन में तिरपाल का मंदिर बनाया और पुन: वहां रामलला विराजमान हो गए | 8 दिसम्बर, 1992 को ब्रह्म मुहर्त में केंद्रीय
सुरक्षा बलों ने सम्पूर्ण परिसर को अपने कब्जे में ले लिया | सुरक्षा बलो की देखरेख में पुजारी द्वारा पूजा होने लगी | 21 दिसंबर, 1992 को अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन
द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर न्यायमूर्ति श्री हरिहरनाथ और श्री
ए.एन. गुप्ता की खंडपीठ ने 1 जनवरी. 1983 को अपने निर्णय द्वारा हिन्दू समाज को आरती, दर्शन, पूजा-भोग का अधिकार दे दिया |
1937
में उठे श्रीराम जन्मभूमि विवाद पर अपने पत्र में महात्मा गाँधी जी ने लिखा था – “धार्मिक
दृष्टिकोण से एक मुसलमान यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसकी मस्जिद में, जिसमे वह बराबर खुदा की इबादत करता आ रहा है, कोई
हिन्दू उसमे बुत ले जाकर रख दे | उसी तरह एक
हिन्दू भी कभी यह सहन नहीं करेगा कि उसके उस मंदिर में, जहां वह बराबर राम, कृष्ण, शंकर, प्रभु और देवी की उपासना करता चला आ रहा
है, कोई उसे तोड़कर मस्जिद बाना दे | जहां पर ऐसे काण्ड हुए है, वास्तव में ये चिन्ह
धार्मिक गुलामी के है” |
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